Tuesday, July 2, 2013

तेरी गीता मेरी गीता - बोधिसत्त्व - 90 -बसंत

प्रश्न- कुछ मत्वपूर्ण बाते बताने की कृपा करें.

उत्तर-१- यह महत्वपूर्ण नहीं है कि बूँद सागर में मिल जाए, महत्वपूर्ण यह है कि सागर बूँद में समा जाए. यह महत्वपूर्ण नहीं है कि तुम परमात्मा में विलीन हो जाओ, महत्वपूर्ण यह है कि परमात्मा तुम में समा जाए. 
२- शान्ति, आनंद, प्रेम पूर्णता न होकर पूर्णता का प्रसाद हैं.
3- जब तक आप अपने नियंता नहीं हो जाते तब तक सब व्यर्थ है.
४- नियंता का प्रसाद ही शान्ति, आनंद और प्रेम है.
५- पूर्ण विशुद्ध ज्ञान की प्राप्ति से ही मनुष्य अपना नियंता हो सकता है.
६- तुम्हारे अन्दर ही सम्पूर्ण अस्तित्व छिपा है.
७- तुम नित्य शुद्ध बुद्ध हो.
८- जो यह सृष्टि है वह मैं हूँ जो सृष्टि से परे है वह भी मैं हूँ.
९- सृष्टि जब तक तुम्हारे बाहर है तुम सृष्टि की जेल में कैद हो जैसे ही तुम इस जेल को तोड़ डालते हो, तुम मुक्त हो जाते हो और तुम इतने विराट हो जाते हो कि सृष्टि तुम्हारे अन्दर आ जाती है.
१०- जड़ और चेतन दोनों परमात्मा से ही उपजे हैं. 
११- कुछ भी कर लो यथार्थ ज्ञान अनुभूति के बिना कोई तुमको मुक्त नहीं कर सकता.
१२- सृष्टि के प्रत्येक परमाणु में उसका अस्तित्व छिपा है जिसे कोई नष्ट नहीं कर सकता.

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