Thursday, July 4, 2013

तेरी गीता मेरी गीता -91- मृत्यु का विज्ञान और महावीर का जन्म और पुनर्जन्म- बसंत

प्रश्न- क्या मृत्यु के विज्ञान को सरलता पूर्वक उदाहरण देकर समझाया जा सकता है?
उत्तर- हाँ. मृत्यु के विज्ञान को समझने के लिए स्वप्न और सुषुप्ति को समझना होगा. एक व्यक्ति  स्वप्न में देखता है कि वह  कार चला रहा है, कार एक पेड़ से टकरा जाती है और खाई में गिर जाती है. इसी प्रकार स्वप्न में देखता है कि उसकी किसी ने चाकू से ह्त्या कर दी आदि. इस घटना से उसकी मृत्यु हो जाती है. इसके बाद वह गहरी नींद में चले जाता है. यही मृत्यु में होता है आप गहरे तमस- अन्धकार-(अज्ञान) में खो जाते हैं. कभी कभी आप मृत्यु के बाद देखते हैं  आप को कोई देव दूत ले जा रहे हैं, कभी रथ में बैठा देखते हैं, तो कभी भयानक यम दूत बिखाई देते हैं, यह सब उसी प्रकार है जैसे स्वप्न म्रत्यु के बाद के बाद दूसरा स्वप्न का चालू हो जाना जैसे मृत्यु के स्वप्न के बाद आप अपने को दिव्य रथ मैं बैठा देखें, उड़ता हुआ देखें या कहीं गन्दगी में पड़ा देखें. यह सब मन की शरारत है. यह मन ही आप का भिन्न भिन्न रूप धारण करता है.
यह मन ही इस जिन्दगी में दुःख सुख का कारण है और यही स्वप्न में भी दुःख सुख का कारण है और मृत्यु के समय भी दुःख का कारण है. मृत्यु को प्राप्त कुछ जीव तात्कालिक रूप से सुषुप्ति के समान कुछ भी महसूस नहीं करते है, कुछ स्वप्नवत दुःख सुख महसूस करते हैं. कालांतर (जो कुछ मिनट से कई वर्षों का हो सकता है) में पुनः सुप्त ज्ञान के जाग्रत हो जाने पर वह जीवात्मा कहीं भी प्रारब्ध वश जन्म लेकर दुःख सुख को भोगता है. यह सुप्त ज्ञान का जागरण नींद खुलने जैसा होता है.

प्रश्न- हमें स्वप्न की बातें याद रहती हैं पर पूर्व जन्म की बातें याद नहीं रहती. ऐसा क्यों?
उत्तर-  पहली बात है हमें सब स्वप्न याद नहीं रहते. दूसरी बात यह है स्वप्न का कुछ भाग ही याद रहता है.  तीसरा स्वप्न पूरा याद रहता है. इसी प्रकार ज्यादातर को पूर्व जन्म की याद नहीं होती है किसी किसी को धुंधली याद आती है और कुछ को सारी बात याद रहती है. दूसरा प्रमुख कारण है समय. स्वप्न और जाग्रति में कुछ घंटे का अंतर होता है और जन्म और पिछले जन्म के  बीच कई वर्षों (शैशवावस्था) का अंतर होता है. बच्चा माँ के गर्भ में फिर १-२ साल के बीच नए वातावरण में सब भूल जाता है. यह स्मृति बोध जीवन मुक्त पुरुषों और सिद्धों में सदा बना रहता है. यहाँ में प्रमाण स्वरुप जैन ग्रंथों में उपलब्ध  तीर्थंकर महावीर स्वामी के केवल पृथ्वी में हुए कुछ जन्मों का विवरण देना चाहूँगा जो सिद्ध होने पर उनके द्वारा बताये गए हैं.

1-पुरुरवा भील - विदेहक्षेत्र की पुन्डरिकिणी नगरी से श्रावको का संघ तीर्थयात्रा पर जा रहा था. इस यात्रा में सागरसेन नाम के मुनि भी थे. जंगल मार्ग से जा रहे थे.  पुरुरवा भील डाकुओ की टोली ने  मुनि व  श्रावको को मारने के लिए बाण चढाए. पत्नी ने रोका. मुनि की तेजस्वी मुद्रा से मन बदल गया.भील ने मुनिराज को वन मे से बाहर का रास्ता बताया. मुनि ने अहिंसा धर्मं को बताया पुरुरवा भील ने क्रूरता छोड़ दी.
2- मरीचि कुमार - मरीचि ऋषभ देव के पुत्र भरत के पुत्र थे. ऋषभ देव से  दीक्षा ली.  मुनि मार्ग छोड़ दिया और अलग होकर अलग वर्तन  सांख्यमत का प्रवर्तन किया.
3-प्रियमित्र ब्राह्मण 
4- पुष्पमित्र ब्राह्मण - बाल्यकाल मे संन्यासी होकर तप किया
5-अग्निसह ब्राह्मण -   संन्यासी होकर तप किया.
6-अग्निमित्र ब्राह्मण - युवावस्था मे गृह त्यागकर संन्यासी हुए.
7-भारद्वाज ब्राह्मण - इस जीवन में भी संन्यासी.
8-त्रस पर्याय - अनेक बार मनुष्य और देव गति मे भ्रमण अर्थात गर्भ में ही अनेक बार मृत्यु को प्राप्त हुए.
9-स्थविर ब्राह्मण - राजग्रुही मे जन्मे फिर संन्यासी हुए.  
10-विश्वनंदी - राजग्रुही नगरी मे विश्व भूति राजा के पुत्र हुए - विश्वभूति ने विशाखभुती को राज्य और विश्वनंदी को युवराज पद दिया.विश्वनंदी ने सुंदर उद्यान बनाया जिसमें उनका ममत्व अधिक था. विशाखनंदी ने उद्यान पर अधिकार  किया. इस कारण विश्वनंदी और विशाखनंदी के बीच युद्ध. विशाखनंदी शरण मे आकर क्षमा याचना करने लगा. विश्वनंदी का क्रोध शांत हुआ साथ ही भाई के साथ युद्ध करके लज्जित हुए. दीक्षा ली और अनेक उपवास, तप किए मुनि हो गए.  मथुरा में बैल ने सींग मारा, विश्वनंदी धरती पर गिर पड़े. विशाखानंदी ने इनके बल के बारे मे कटाक्ष किया. विश्वनंदी मुनि क्रोध मे बोलने लगे मैं तप के प्रभाव से भविष्य मे सबके सामने छेद डालूँगा.....
11-त्रिपुष्ठ वासुदेव - प्रजापति राजा के पुत्र के रूप मे जन्म लिया. गाँव मे एक सिंह ने लोगो की हिंसा करके भयभीत कर रखा था. त्रिपुष्ठ ने सिंह को स्वयं मारने की इच्छा प्रकट की. सिंह से युद्ध कर पछाड़ दिया. विद्याधर के राजा की पुत्री स्वयंप्रभा का विवाह त्रिपुष्ठ के साथ हुआ. प्रतिस्पर्धी राजा अश्वग्रीव अपमान करने लगा. दोनों के बिच युद्ध हुआ. क्रोध पूर्वक त्रिपुष्ठ ने अश्वग्रीव को मार डाला. 
12-सिंह - निर्दय सिंह 
13-सिंह - बलवान सिंह हुआ जिसकी गर्जना सुनकर जंगल के पशु कांप उठते थे. अमितकिर्ती और अमितप्रभ नाम के मुनि आकाशमार्ग से  सिंह को प्रतिबोध करने नीचे उतरे   मुनि की वाणी से पूर्व जन्मों का स्मरण हुआ. मुनि  ने बताया की भरत क्षेत्र के चौबिसवें  तीर्थंकर बनोगे. सिंह योनी में सम्यग्दर्शन  हुआ. एक ही करवट बैठा रहा शरीर शांत हो गया. 
14-कनकध्वज - विदेह्क्षेत्र मे कनकप्रभ राजा के पुत्र हुए. सुंदरवन मे यात्रा करने गए, वहां तेजस्वी मुनि इनको को देखकर अति प्रसन्न हुये और दीक्ष्ह लेने को कहा. यह जीवन  वैराग्यपूर्वक बीता.
हरिषेण-व्रजधर राजा के पुत्र के रूप मे जन्म हुआ. इस जन्म में श्रावक के १२ व्रत धारण किए तथा दीक्षा लेकर वन मे जाकर  मग्न हो गए और समाधि पूर्वक शरीर त्याग किया.
15-प्रियमित्र- विदेह्क्षेत्र मे धनंजय राजा के पुत्र के रूप मे जन्मे. राजा ने राज्य इनको सौंप दिया.यह  राज्य के साथ साथ अणुव्रतों का भी पालन करते थे. कालान्तर में चित्त संसार से विरक्त हुआ और  जिन दीक्षा ली और पालन किया.
16-नंदन- भरतक्षेत्र के पूर्व भाग मे श्वेतनगरी मे राजा नन्दिवर्धन के पुत्र के रूप मे जन्म हुआ. पिता के बाद नन्द   ने राज्य का भार संभाल लिया. प्रौष्ठल नाम के श्रुतकेवली मुनि श्वेतपुरी में आए थे  जिनके  उपदेश  से  जातिस्मरण हुआ  पूर्व जन्म याद आ गए. मुनि ने दीक्षा लेने को कहा.  दीक्षा अंगीकार की. इस जन्म में तीर्थंकर नामकर्म बंधना प्रारम्भ हो गया. इनमें सोलह प्रकार की मंगल भावना जागृत हुई और सम्यक्त्व को प्राप्त हुआ. इस जन्म में समाधि मरण को प्राप्त हुए.
17- तीर्थंकर  महावीर स्वामी

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