Tuesday, November 8, 2011

वेदांत-vedant-अध्याय-११- स्वप्न का विज्ञान- स्वप्न में दांत वाले पुरुष को देखना मृत्यु का सूचक है.-Prof.Basant


            स्वप्न का विज्ञान

स्वप्न में जो भी देखा सुना जाता है उसे सृष्टि में किसी न किसी जगह किसी न किसी जीव अथवा पदार्थ के रूप में होना निश्चित है.

हम रात भर स्वप्न देखते हैं. दिवा स्वप्न भी अक्सर लोग देखते रहते हैं, दिवा स्वप्न कल्पना कहलाते हैं. नीद में देखा गया स्वप्न ही स्वप्न होता है. कभी कभी कुछ कम अवधि  के स्वप्न याद रहते हैं.
श्रुति में स्वप्न के विषय में जगह जगह चर्चा हुयी है.
वृहदारण्यक उपनिषद् में स्वप्न के विषय में प्रसंग है,जिस प्रकार एक राजा अपने सेवक और प्रजा के साथ देश का भ्रमण करता है उसी प्रकार जीव स्वप्नावस्था  में प्राण, शब्द, वाणी आदि को लेकर इस शरीर में इच्छानुसार विचरता है. वृहदारण्यक उपनिषद्  में वर्णन है स्वप्नावस्था में जीव लोकपरलोक दोनों देखता है और दुःख सुख दोनों का अनुभव करता है. इस स्थूल शरीर को अचेत करके जीव  वासनामय शरीर की रचना करता है फिर लोक परलोक देखता है.
इस अवस्था में देश-विदेश,नदी, तालाब, सागर, पर्वत मैदान. वृक्ष, मल, मूत्र, स्त्री, पुरुष, सेक्स, क्रोध, भय आदि नाना प्रकार के संसार की रचना कर लेता है.
जीव द्वारा स्वप्न में भी सृष्टि-सांसारिक पदार्थों की रचना  होती है. यह रचना अत्यंत रहस्यमय और अति विचित्र होती है.

मांडूक्योपनिषद्  में गूढ़ रूप से स्वप्न को स्पष्ट किया है.

स्वप्न भांति सम व्याप्त जग
ज्ञान ब्रह्म पर ब्रह्म
सात अंग उन्नीस मुख
तैजस दूसर पाद.

विशेष सात अंग सात लोक हैं. मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा, सहत्रधार चक्र. उन्नीस मुख पांच कर्मेन्द्रियाँ,पांच ज्ञानेन्द्रियाँ.पांच प्राण- प्राण, अपान, समान,व्यान, उदान तथा मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार.

उकार मात्रा दूसरी
और श्रेष्ठ अकार
उभय भाव है स्वप्नवत
तैजस दूसर पाद

स्वप्न में जीवात्मा अपनी सभी उपाधियों के समूह साथ एक होता है,इस समय अन्तःकरण तेजोमय होने के कारण इस अवस्था में आत्मा को तैजस कहा है. तैजस ब्रह्म की ऊपर से नीचे तीसरी अवस्था है. स्वप्नावस्था में दोनों जीवात्मा और आत्मा का तैजस स्वरूप  मनोवृत्ति से शब्द स्पर्श रूप रस गंध का अनुभव करते हैं. तैजस सूक्ष्म विषयों का भोक्ता है. जीवात्मा और आत्मा  का तैजस स्वरूप दोनों अभेद हैं जैसे जल की बूंद में और जलाशय मैं पडने वाला आकाश का प्रतिविम्ब.
कठोपनिषद कहता है- एष सुप्तेषु जागर्ति कामं कामं पुरुषो निर्मिमाणः यह पुरुष जो नाना भोगों की रचना करता है सबके सो जाने पर स्वयं जागता है. यहाँ पुरुष को कामनाओं का निर्माता बतलाया है. अतः  सिद्ध है स्वप्न में भी सृष्टि होती है,
क्या स्वप्न में हुई सृष्टि वास्तविक है.-तात्कालिक रूप से स्वप्न में हुई सृष्टि का कोई अस्तित्व नहीं दिखायी देता परन्तु इस विषय में मेरा निश्चित विचार है कि स्वप्न में जो भी देखा सुना जाता है उसे सृष्टि में किसी न किसी जगह किसी न किसी जीव अथवा पदार्थ के रूप में होना निश्चित है. स्वप्न और सृष्टि के  विकास का गहरा सम्बन्ध है स्वप्न है तो सृष्टि है और सृष्टि है तो स्वप्न हैं.

स्वप्न के शुभअशुभ परिणाम-
श्रुति का इस विषय में निश्चत मत है कि स्वप्न भविष्य में होने वाले शुभअशुभ परिणाम के सूचक हैं.
एतरेय आरण्यक के अनुसार स्वप्न में दांत वाले पुरुष को देखना मृत्यु का सूचक है.

छान्दग्योपनिषद में कहा है कामना की पूर्ति के लिए स्वप्न में स्त्री को देखना समृद्धि  का सूचक है.आदि 

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