Wednesday, May 1, 2013

तेरी गीता मेरी गीता - शिव - 68 - बसंत


प्रश्न- शिव स्वरुप बड़ा अद्भुत है जो सिर से लेकर पैर तक अजीबो गरीबी लक्षणों से युक्त है जैसे सिर में गंगा विराजमान है तो माथे में चन्द्रमा आदि यह सब क्या है?

उत्तर-  निसंदेह शिव स्वरुप बड़ा अद्भुत है  यह एक सिद्ध योगी के लक्ष्ण हैं जो शिव रूप में चित्रित किये हैं.सिर में विराजमान गंगा जी हैं, इसका तात्पर्य है जिनकी बुद्धि हर स्थिति में शांत शीतल है, जो कभी उद्विग्न नहीं होती है, इसे सिर में विराजमान गंगा की शीतलता से चित्रित किया है. माथे में चन्द्रमा निर्मल विशुद्ध ज्ञान का द्योतक है. गले में सर्प बताता है की उन्होंने अपने अहंकार को सर्प की भांति वश में कर गले में धारण कर लिया है, वह अपने गले में संसार का समस्त  विष अर्थात अशुभ धारण किये हुए सृष्टि का कल्याण करते हैं इसलिए नीलकंठ हैं, नग्न रहने वाले शिव इस बात का प्रतीक है कि वह  परमात्मा का निराकार स्वरुप है जिसकी दिशाएँ ही वस्त्र हैं, आकाश ही शिव वस्त्र है और शरीर में राख  यह परिलक्षित करती है कि जिसे शरीर से कोई मोह नहीं है. शिव सगुण रूप में देह भान से परे और निर्गुण रूप में दिगंबर हैं. शिव के गण कोई बिना मुख का, कोई  मुख वाला तो कोई बहुत मुख वाला अर्थात सभी शुभ अशुभ, अच्छे बुरे शिव के लिए सामान हैं. सभी मनुष्य, देव, गंधर्व, भूत, जिन्न, राक्षस, असुर, बेताल आदि सभी उनको प्रिय हैं अर्थात जो सबके लिए सामान है. बैल की सवारी करते  हैं. बैल अज्ञान और बल का प्रतीक है अर्थात जो अज्ञान रुपी बली बैल को वश में कर उस पर सदा सवार रहते हैं. गणेश जीव के प्रतीक हैं  जीव जिनका पुत्र है. माता पार्वती आदि शक्ति जिन में सदा समाई रहती हैं. यही अर्धनारीश्वर रूप है. कोई घर नहीं अर्थात सर्व समर्थ होने पर भी संसार से विरक्त यह स्वरुप पूर्णत्व प्राप्त शुद्ध योगी का है जो केवल शिव अर्थात कल्याणकारी ही होता है. भीख मांग के भोजन करना  उनकी अनासक्ति स्थिति और वर्तमान में संतुष्टि की परिचायक है.जो यह शिक्षा देता है कि सन्यासी, संत, योगी  को घर बार, आश्रम, महल न बनाकर जहाँ जो मिल जाय उसी में संतुष्ट रहना चाहिए. सग्रह योग विरुद्ध है. यह शिव स्वरुप संत, योगी, सन्यासी को शिक्षा देता है कि यदि परमतत्त्व पाना है तो उनके समान सदा शांत और विरक्त रहकर ही पाया जा सकता है.

प्रश्न- शिव लिंग क्या है और यह क्यों पूजा जाता है?

शिव शब्द कल्याणकारी अव्यक्त परमात्मा जिसे आत्मा भी कहते हैं और लिंग सूक्ष्म शरीर के लिए आया है. शिव लिंग व्यक्त अव्यक्त परमात्मा का विग्रह है.
ब्रह्म सूत्र के चौथे अध्याय  के पहले पाद का दूसरा सूत्र है-            
                                       'लिंगाच्च'
उत्तर- लिंग का अर्थ होता है प्रमाण. वेदों और वेदान्त में लिंग शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आया है. सूक्ष्म शरीर 17 तत्त्वों से बना है. शतपथ ब्राह्मण-5-2-2-3 में इन्हें सप्तदशः प्रजापतिः कहा है. मन बुद्धि पांच ज्ञानेन्द्रियाँ पांच कर्मेन्द्रियाँ पांच वायु. इस लिंग शरीर से आत्मा की सत्ता का प्रमाण मिलता है. वह भासित होती है. आकाश वायु अग्नि जल और पृथ्वी के सात्विक अर्थात ज्ञानमय अंशों से पांच ज्ञानेन्द्रियाँ और मन बुद्धि की रचना होती है. आकाश सात्विक अर्थात ज्ञानमय अंश  से श्रवण ज्ञान, वायु से स्पर्श ज्ञान, अग्नि से दृष्टि ज्ञान जल से रस ज्ञान और  पृथ्वी से गंध ज्ञान उत्पन्न होता है. पांच कर्मेन्द्रियाँ हाथ, पांव, बोलना. गुदा और मूत्रेन्द्रिय के कार्य सञ्चालन करने वाला ज्ञान.
प्राण अपान,व्यान,उदान,सामान पांच वायु हैं. यह आकाश वायु, अग्नि, जल. और पृथ्वी के रज अंश से उत्पन्न होते हैं. प्राण वायु नाक के अगले भाग में रहता है सामने से आता जाता है. अपान गुदा आदि स्थानों में रहता है. यह नीचे की ओर जाता है. व्यान सम्पूर्ण शरीर में रहता है. सब ओर यह जाता है. उदान वायु गले में रहता है. यह उपर की ओर जाता है और  उपर से निकलता है. सामान वायु भोजन को पचाता है.
हिन्दुओं का लिंग पूजन परमात्मा के प्रमाण स्वरूप सूक्ष्म शरीर का पूजन है.
 

No comments:

Post a Comment

BHAGAVAD-GITA FOR KIDS

    Bhagavad Gita   1.    The Bhagavad Gita is an ancient Hindu scripture that is over 5,000 years old. 2.    It is a dialogue between Lord ...