Sunday, May 12, 2013

तेरी गीता मेरी गीता - बोध - 73 - बसंत



प्रश्न- आत्म तत्व का बोध हो गया है यह कैसे समझ में आयेगा?
उत्तर- आपका नाम बिनोद  है, इस ज्ञान के लिए किसी नियम अथवा सिद्धांत की आपको आवश्यकता नहीं होती उसी प्रकार आत्मज्ञानी जान लेता है कि वह आत्मा है अथवा वह ब्रह्म है उसके लिए भी किसी नियम अथवा सिद्धांत की आवश्यकता नहीं होती.

प्रश्न- यदि हम जीव स्वभाव में रहना चाहें तो क्या कोई हर्ज है?
उत्तर- कोई हर्ज नहीं है ईश्वर ने स्वयं अपनी इच्छा से जीव स्वभाव स्वीकार किया है. जीव भी उसी का ही स्वरुप है परन्तु यहाँ अपना बोध, अस्मिता प्रतीति और विषयों में भटक जाने से आप सीमाओं में बंध जाते हैं. इसी कारण थोड़ा सा सुख और ज्यादा अशांति भोगते हैं. आपका अपना कुछ नहीं है आप की स्थिति हलके विक्षिप्त के सामान है जो क्या पाना चाहता है क्या ढूंड़ता है उसे खुद पता नहीं है. आप कुछ भी प्राप्त कर लें आप सदा डरे डरे रहते हैं फिर भी जीव स्वभाव आपको रुचिकर लगता है तो उसमें मगन रहें. जीव स्वभाव में रहना कोई बुराई नहीं है. जीव भी शुद्ध है और अविनाशी है बस अज्ञान के कारण पूरा मजा नहीं ले पाता.

प्रश्न- फिर ईश्वर को कैसे पाया जाएगा?
उत्तर- ईश्वर को क्या पाना है बस एक जगह से अपने स्वभाव को उखाड़ना है और दूसरी जगह लगाना है.

प्रश्न- किस स्वभाव को उखाड़ना है?
उत्तर- जीव स्वभाव को उखाड़ना है. अपने अज्ञान को उखाड़ना है. अस्मिता प्रतीति को उखाड़ना है.

प्रश्न- कहाँ लगाना है?
उत्तर-  ईश्वरी स्वभाव में लगाना है. बोध अनुभूत करना है.

No comments:

Post a Comment

BHAGAVAD-GITA FOR KIDS

    Bhagavad Gita   1.    The Bhagavad Gita is an ancient Hindu scripture that is over 5,000 years old. 2.    It is a dialogue between Lord ...