Sunday, May 19, 2013

तेरी गीता मेरी गीता -क्या नरक होता है?- 77 - बसंत



प्रश्न- क्या नरक होता है?
उत्तर-  जो कहता है नर्क होता है वह झूट बोलता है. जिसने भी नरक के दंड बनाए, भय दिखाया उसने अपनी विक्षिप्तता से मानवजाति को भयाक्रांत कर विक्षिप्त बना दिया, शायद ही मानव जाति का उससे बड़ा कोई दुश्मन न है न होगा. आप स्वयं मूल्यांकन करें-
जीव ईश्वर का अंश है फिर वह नरक कैसे जा सकता है. जिसे जलाया नहीं जा सकता उसे अग्नि में जलाकर अथवा तेल के कड़ाहों में उबालकर कैसे दण्डित किया जा सकता है. जिसे काटा नहीं जा सकता उसे किस प्रकार नरक में आरों से काटा जा सकता है. जिसे कोई दर्द नहीं होता उसे साँपों,बिच्छू से डंक लगवाकर कैसे पीड़ा दी जा सकती है. जिसे कोई पीड़ा नहीं होती उसे किस प्रकार सूली में बिठाया जा सकता है.
भगवद्गीता के वचन इन बातों की पुष्टि करते हैं.

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।23-2।
इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते हैं, इसे आग में जलाया नहीं जा सकता, जल इसे गीला नहीं कर सकता तथा वायु इसे सुखा नहीं सकती। यह निर्लेप है, नित्य है, शाश्वत है।

अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ।24-2।
आत्मा को छेदा नहीं जा सकता, जलाया नहीं जा सकता, गीला नहीं किया जा सकता, सुखाया नहीं जा सकता, यह आत्मा अचल है, स्थिर है, सनातन है।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि भिन्न भिन्न रूपों में ईश्वर ही नाटक कर रहा है वही राम है तो वही रावण है. वही पशु है तो वही पक्षी है. फिर वह दंड का भागी कैसे?
श्वेताश्वतरोपनिषद्  अध्याय चार में ऋषि कहते हैं-

तू नर है तू नारि तू
तू कुमार कुमारी
वृद्ध हो तू चले दण्ड संग
तू विराट तू विश्व मुख.३.

नील वर्ण कीट है
लाल हरित पक्षी भी
मेघ है ऋतु सभी
सप्त सागर तू हि है
विश्व भूत तुझसे हैं
आदि विभु वर्तमान.४.

इसी प्रकार भगवद्गीता कहती है-
विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ।18-5।
जिनका मन सम भाव में स्थित है जो ब्राह्मण कुत्ते व चाण्डाल में एक भाव अथवा ब्रह्म भाव रखता है; ऐसे पुरुष द्वारा वास्तव में संसार जीत लिया गया है अर्थात वह संसार बन्धन से ऊपर हो जाते हैं। ब्रह्म, दोष रहित और सम है और वह भी समभाव के कारण दोष रहित हो ब्रह्म स्वरूप हो जाते हैं। यही ब्राह्मी स्थिति है।
जो ब्राह्मण कुत्ते व चाण्डाल में एक भाव अथवा ब्रह्म भाव रखता है का तात्पर्य है कि सब ईश्वर के ही अंश हैं फिर नरक और नरक के ढंड मानसिक विक्षिप्तता नहीं तो क्या है.

भगवदगीता के  प्रथम अध्याय के श्लोक संख्या 44में विषादयुक्त अर्जुन के नर्क भय को देख श्री कृष्ण  मंद मंद मुस्कुराते हैं.
अर्जुन का नर्क भय-
उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्यणां जनार्दन।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम।44।
हे द्वारिका नाथ, हे जनार्दन, जिन मनुष्यों का कुल धर्म नष्ट हो जाता है उस कुल के पितर और स्वयं वह मृत्यु के पश्चात अनिश्चित काल तक नरक में रहते हैं, यह बात  हम सुनते आये हैं।

तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्‌ ।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः। 1।
युद्ध भूमि में करुणा से भरा हुआ जिसके आंखों से आंसू बह रहे थे व्याकुल नेत्र वाला, विषाद युक्त अर्जुन के प्रति मंद मंद मुस्कराते हुए श्री भगवान बोले।

न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः ।
न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्‌ ।12।
आत्मा की नित्यता बतायी गयी है। आत्मा नित्य है, अजर है, अमर है। उसका कभी नाश नहीं होता है। जीव भी आत्मा का ही स्वरुप है अतः वह भी नित्य है। जीव तत्व को कोई नष्ट नहीं कर सकता। सृष्टि के सभी जीव पहले भी थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे।

वही भगवान् श्री कृष्ण भगवदगीता के  सोलहवें अध्याय के श्लोक संख्या 21 में नरक शब्द का प्रयोग करते है पर यहाँ  नरक शब्द अधोगति का सूचक है. भगवान् कहते हैं मनुष्य के अन्दर व्याप्त  काम क्रोध और लोभ को नरक के द्वार हैं अर्थात जिस मनुष्य में काम क्रोध और लोभ की जितनी अधिक मात्रा होगी वह उतना अशांत और विक्षिप्त होगा. यही नरक है.

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्‌ ।21।
काम, क्रोध और लोभ यह तीन नरक के द्वार हैं अर्थात जहाँ काम क्रोध और लोभ होगा वहाँ मूढ़ता की अधिकता होगी और मूढ़ता (तमस) अधोगति की ओर ले जाती है। इन तीनों से आत्मा का स्वरूप आच्छादित हो जाता है। जीव अपनी स्वरूप स्थिति को पूर्णतया भूल जाता है और अधोगति की ओर चल देता है उसका पतन हो जाता है। अतः आत्म स्वरूप को विस्मृत करने वाले इन तीनों मूढ़ता के स्वजनों को हमेशा के लिए त्याग देना चाहिए।

इसी प्रकार सोलहवें अध्याय के श्लोक संख्या 15 & 16 में नरक शब्द का प्रयोग करते है
आढयोऽभिजनवानस्मि कोऽन्योऽस्ति सदृशो मया।
यक्ष्ये दास्यामि मोदिष्य इत्यज्ञानविमोहिताः ।15।
अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः।
प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ।16।
मैं बड़ा धनी हूँ, कुबेर से ज्यादा धन मेरे पास है, मैं बड़े कुटुम्ब वाला हूँ, मेरे समान दूसरा कोई नहीं है। जो हूँ मैं ही हूँ, मैं यज्ञ करूंगा, दान दूँगा, आमोद प्रमोद करूंगा, ऐसी कभी खत्म नहीं होने वाली कामनाओं को लिए हुए रहते हैं। इनका हृदय सदा जलता रहता है। इनकी बुद्धि अज्ञान से मोहित व भ्रमित रहती है। यह जमीन, धन, परिवार, झूठी प्रतिष्ठा के मोह से घिरे रहते हैं। सदा विषय भोग में लगे अत्यन्त कामी आसुरी वृत्ति के यह लोग घोर नरक को प्राप्त होते हैं यहाँ घोर नरक घोर अशांति ,मूड़ता, विक्षिप्तता का सूचक है. ऐसे लोगों का चित्त सदा ईर्षा की आग मैं जलता रहता है यही नरक है.

जो कुछ भी आप को दंड, कष्ट, दुःख, नरक भोगना है या आप भोगेंगे वह शरीर में जाग्रत अवस्था में  ही अथवा स्वप्न में ही भोगंगे और इसका कारण है काम, क्रोध और लोभ. इन वचनों में आप पूर्ण विशवास कर सकते हैं कि मरने के बाद आपको जलाया नहीं जाएगा, अथवा तेल के कड़ाहों में उबालकर दण्डित नहीं किया जाएगा, किसी भी प्रकार नरक में आरों से काटा नहीं जाएगा, साँपों,बिच्छू से डंक लगवाकर पीड़ा नहीं दी जायेगी, न सूली में बिठाया जाएगा.  हाँ स्वप्नवत कष्ट अनुभूति हो सकती है.
मरने के बाद आपको उठाया जाएगा अर्थात आपको जगाया जाएगा और आप अपनी आसक्ति के कारण जन्म लेकर प्रारब्धवश अज्ञान से काम क्रोध लोभ के वशीभूत होकर जो मानसिक और शारीरिक कष्ट भोगेंगे वही आपका नरक होगा.

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