Wednesday, April 3, 2013

तेरी गीता मेरी गीता - 55 - बसंत


प्रश्न- मैं बोध को विस्तार से समझाइये.

उत्तर- आइये आपको एक स्त्री की कहानी सुनाता हूँ. अनाथालय को एक बच्ची मिलती है उसे वहां सभी गुड़िया कहते थे. एक उच्च शिक्षित परिवार गुड़िया को गोद ले लेता है और उसका नाम रखता है वेदवती. वेदवती बचपन से मेधावी थी. वह शिक्षा  प्राप्त कर निपुण सर्जन बन जाती है. एक दिन वह कार चलाते हुए वह नदी में गिर गयी और उसका कोई पता नहीं चलता. वह नदी में बहते हुए एक करीम  नाम के मछुवारे को मिलती है. वेदवती की यादाश्त जा चुकी थी. वह करीम  के साथ रहने लगी. उसके दो बच्चे भी हो गए. वह मछली बेचने जाने लगी. यहाँ वह नसरीन हो गयी थी. प्रकृति ने फिर अपना खेल खेला .करीम के गाँव में भयंकर बाड़ आयी. करीम का घर परिवार बाड़ में बह गया . कोई नहीं बचा पर नसरीन को एक साधू महाराज ने बचा लिया. मानसिक आघात से नसरीन की दोनों  यादाश्त जा चुकी थी. वह बाबाजी की शिष्या हो गयी उसका नाम बाबाजी ने प्रज्ञा रख दिया. वह आश्रम में रम गयी.धीरे धीरे वह उपदेश देने लगी.  लोग उसे गुरु माँ कहने लगे. भक्तों की भीड़ बड़ती गयी. वह प्रसिद्ध हो गयी परन्तु  ईश्वर के खेल निराले हैं. वह एकाएक भूलने लगी. कई चिकित्सकों के इलाज के बाद भी वह सब भूल गयी. धीरे धीरे वह  गुरु माँ आश्रम में उपेक्षित होने लगी. वह एक दिन आश्रम से निकल पड़ी और अनजान रास्ते की और चल दी. आश्रम से किसी ने उसे ढूंडा नहीं. आजकल वह एक अनाम भिखारिन की जिन्दगी जी रही है. कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता.
यह एक स्त्री के एक शरीर में.भिन्न भिन्न पांच व्यक्तित्वों की कहानी  है.
निष्कर्ष -
1- आपका व्यक्तित्व अस्थायी है और स्मृति खो जाती है. इसी प्रकार शरीर भी अस्थायी है वह भी भिन्न भिन्न अवस्थाओं में बदलता रहता है.
2-व्यक्तित्व की तुलना में शरीर के परिवर्तन देर  में दिखायी देते है.
3-व्यक्तित्व शरीर को अपने अनुसार क्रियाशील  बनाता है.
4- व्यक्तित्व और शरीर दोनों नाशवान हैं. यह बदलते रहते हैं
5-व्यक्तित्व स्मृति पर निर्भर करता है.
6-व्यक्तित्व और शरीर की सभी अवस्थाओं में, मैं बोध बना रहता है.
7-मैं बोध हर अवस्था में बना रहता है.
8-जब मैं बोध हर अवस्था में एकसा बना रहता है, जो तत्त्व सदा एक सा रहता है जो कभी किसी अवस्था में नहीं बदलता है वह कभी नष्ट नहीं हो सकता. इसलिए देह नष्ट होने पर मैं बोध नष्ट नहीं होता  है.
9-विज्ञान का नियम है जो बदलने वाली वस्तु है वह सदा बदलते रहती है  देह, व्यक्तित्व और स्मृति सदा बदलते हैं. इसलिए नष्ट होने, खोने और वापस आने की प्रकृति को रखते है और नष्ट होते हैं, खोते हैं और बदले रूप में वापस आते हैं. जो तत्त्व सदा एक सा रहता है वह कभी नष्ट नहीं हो सकता, न होता है.
10-मैं बोध प्रत्येक जीव में हर अवस्था में विद्यमान रहता है, अधिक गहराई से देखने पर यह कण कण मैं दिखायी देता है और यह मैं बोध की विराट अवस्था ही परम बोध है.
11-इस मैं बोध के साथ कोई न कोई व्यक्तित्व चिपक जाता है जो दुःख का कारण है और जीव को सीमा में बाँध देता है.

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