Friday, April 19, 2013

तेरी गीता मेरी गीता - स्वभाव - 60 - बसंत



प्रश्न- हमारा स्वभाव क्या है?
उत्तर- हमारा स्वभाव ज्ञान है क्योकि हम ज्ञान के ही परमाणुओं से बने हैं. इसकी शुद्ध और पूर्णअवस्था ईश्वर है और इसकी मिलावट वाली अवस्था जीव है.
इस प्रकार स्वभाव के दो नित्य रूप दिखाई देते हैं.
ईश स्वभाव
जीव स्वभाव
ज्ञान के बोध मात्रानुसार जीव की  लाखों करोड़ो योनियाँ हैं और उनके विभिन्न प्रकार हैं. यह मिट्टी के कण से लेकर विराट सृष्टि तक फैला हुआ है. यह ईश्वर का सगुण स्वरुप है तो यही देव, दानव, यक्ष, मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, सर्प, पेड़, पादप, पत्थर, मिट्टी आदि है.
प्रत्येक परमाणु में ईश और जीव स्वभाव दोनों सदा विद्यमान रहते हैं. मनुष्य देह में इन दोनों का अलग अलग अहसास देखा जा सकता है.

प्रश्न- मनुष्य देह में इन दोनों का अलग अलग अहसास  क्या है?
उत्तर- मनुष्य देह में कर्ता भोक्ता और संहारक का भाव जीव स्वभाव है और साक्षी एवं दृष्टा का भाव ईश स्वभाव है.
स्वभाव की मूल स्थिति में जीव भी शुद्ध है और ईश्वर हर स्थिति में सदा शुद्ध है.
जीव के स्वभाव में अस्मिता की प्रतीति से मिलावट आती जाती है. जितनी अस्मिता की प्रतीति उतनी मिलावट.और जीव समझता है वह राहुल है, अमरीक है आदि. उसकी माँ है, पिता है, संपत्ति है, संसार है.....आदि. इसी को अज्ञान कहते हैं. अस्मिता की मिलावट न हो तो जीव कर्ता, भोक्ता और संहारक, होते हुए भी ईश्वर की तरह शुद्ध है.

प्रश्न- मनुष्य के पास दो स्वभावों का अहसास उसके लिए क्या दिशा निर्धारित करती है?
मनुष्य के पास दो स्वभावों का अहसास है. इसलिए यह उसकी रूचि है कि वह किस स्वभाव को अपनाता है. इन दोनों में से एक स्वभाव अपनाना या दोनों को अपनाना मजबूरी है. जीव स्वभाव अपनाओगे तो अस्मिता की प्रतीति में फंसते जाओगे, सुख दुःख, ऊँच नीच में सदा लिप्त रहोगे और ईश स्वभाव अपनाओगे तो एक दिन ईश्वर हो जाओगे. जो योग्य रुचे वह करें.

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