Wednesday, April 17, 2013

तेरी गीता मेरी गीता - 57 - बसंत



प्रश्न - कृपया ज्ञान को अधिक सरल शब्दों में बतायें.
उत्तर- सामन्यतः हम उस ज्ञान को जानते हैं जो दूसरे से प्राप्त होता है जैसे पुस्तकों का ज्ञान, माता, पिता, शिक्षक, प्रकृति और समाज द्वारा प्राप्त ज्ञान.
दूसरा वह ज्ञान है जो आपका कारण है, जिसके कारण आपकी अस्मिता है, आपका अस्तित्व है, जिसके कारण आपका जन्म है, जीवन है, मृत्यु है और मोक्ष है. जो आपका साक्षी है, जो आपको निरंतर देखने वाला है, जो कर्ता भोक्ता और संहारक है, जो आपकी अंतर ज्योति है.

प्रश्न  -  ईश दर्शन अथवा पूर्ण बोध कब होता है.
उत्तर- जब आपके लिए समय और आकाश (space) समाप्त हो जाए.

प्रश्न-स्मृति और विस्मृति में किसे शक्तिशाली माना जाय?
जीव की स्थिति में विस्मृति शक्तिशाली है परन्तु बोध होने पर विस्मृति सदा सदा के लिए नष्ट हो जाती है. अतः स्मृति शक्तिशाली है.

प्रश्न - गुरु कृपा को एक शब्द में समझाइये.
उत्तर- निज कृपा अथवा आत्म कृपा

प्रश्न- गुरु तो दूसरा होता है.
उत्तर- जब तक दूसरे का बोध रहेगा गुरु कृपा नहीं होगी. दूसरा तुम्हारा शिक्षक अथवा मार्गदर्शक हो सकता है. आत्मा तुम्हारी और तुम्हारे गुर की एक ही है जिसे आत्मबोध होने पर ही जान पाओगे.

प्रश्न -  क्या आप इसे उदाहरण देकर समझा सकते है.
उत्तर- शंकराचार्य कहते हैं-
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः
चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्.
न कोई मित्र, न कोई गुरु है और न ही कोई शिष्य है. मैं परम कल्याणकारी चैतन्य आनंद स्वरुप  हूँ.
विवेकानंद ने द्वैत - गुरु पूजा न चलाकर आत्म पूजा- अद्वैत स्थापना की. बोध का अर्थ द्वैत समाप्त होना है.
कबीर कहते हैं-
तेरा साईं तुझ में

प्रश्न- फिर कबीर ने यह क्यों लिखा - बलिहारी गुरु आपकी गोविन्द दियो बताय
उत्तर- इसका अर्थ समझिये हे गुरु, हे आत्मा मैं आज आपको पाकर धन्य  हो गया हूँ. मुझे पता चल गया कि ईशत्व क्या है?
रामकृष्ण परमहंस का माँ काली को तलवार से काटना और तत्काल आत्मतत्त्व में विलीन होना यही तो बताता है कि मैं ही परम कल्याणकारी चैतन्य आनंद स्वरुप  हूँ,
तुमसे अलग तुम्हारा गुरु तभी तक है जब तक मन है. जब तक मन है तब तक वास्तविकता नहीं है.
श्री कृष्ण कहते हैं
एकोहमद्वितियोनास्ति
मेरे अलावा दूसरा कोइ नहीं है.जब तक विस्मृति है तब तक गुरु है और शिष्य है. जब तक मन है तब तक गुरु है तभी तक शिष्य है .

प्रश्न- गुरु स्तुति क्या है?
उत्तर- गुरु स्तुति आत्म स्तुति है.
महावीर कहते हैं -
तू नित्य है शुद्ध है मुक्त है.

प्रश्न - भारत में आजकल अनेक गुरु हैं, आत्म ज्ञानी हैं और कुछ अपने को भगवान कहते हैं, हम उनके विषय में कैसे निर्णय लें?
उत्तर - अरे भाई उस गुरु अथवा भगवान के पास एक मरी मक्खी लेकर जाओ और उससे कहो कि इसे ज़िंदा कर दे. बस उसके बाद स्वयं निर्णय कर लेना.

प्रश्न- यदि मरी मक्खी किसी ने ज़िंदा कर दी.
उत्तर - तो उसे पकड़ लेना.वह तुम्हें गुरु तत्त्व का बोध करा देगा. तुम जान लोगे तुम और वह एक ही हो.

प्रश्न-  धर्म और अध्यात्म का ज्ञान देने वाले व्यक्ति को क्या कहें?
उत्तर-  जिज्ञासु, आत्म चिन्तक, तत्त्व चिन्तक, तत्व प्रबोधक. मुनि, आचार्य यह शब्द उचित हैं. इसमें भी सावधानी रखनी होगी. जो यथार्थ को वैज्ञानिक रूप से सुस्पष्ट कर सके वही आत्म चिन्तक, तत्त्व चिन्तक, तत्व प्रबोधक. मुनि, आचार्य हो सकता है. जो जाग्रत अवस्था में रहने का अभ्यास करता हो वह मुनि है. जितनी देर जाग्रत उतनी देर मुनि.
आत्म ज्ञानी अथवा तत्त्व ज्ञानी जन समुदाय को तत्त्व ज्ञान, कथा और भाषण की तरह नहीं सुनाते. वह किसी विरले को ही तत्त्व ज्ञान बताते हैं क्योंकि यह मार्ग सहज नहीं है. कबीर कहते हैं-
जेहि घर फूका आपना चलो हमारे साथ.
श्री कृष्ण कहते हैं-
अनेक जन्मों के बाद साधक तत्त्व ज्ञान को प्राप्त होता है, ऐसा महात्मा दुर्लभ है.

प्रश्न- धर्म गुरुओं की भीड़ जुटाने व्  टी वी प्रचार को क्या कहें?
उत्तर- यह संसार में यश प्राप्ति की इच्छा का परिणाम है. ज्ञानी इसे गन्दगी समझ कर त्याग देता है.
क्या सूर्य को भीड़ जुटाने अथवा टी वी प्रचार की आवश्यकता है? फिर जिसने सूरज को बनाया, सृष्टि बनायी वह या जो उसे जानने वाला है क्या ऐसी इच्छा कर सकता है?




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