Thursday, March 21, 2013

तेरी गीता मेरी गीता- 40 -बसंत



क्या आप आधुनिक विज्ञान की अंतिम खोज  हिग्स बोसोन कण-न्यूट्रिनो के द्वारा भी आत्मा के सिद्धांत को स्पष्ट कर सकते है. वैज्ञानिक मानते हैं कि हिग्स बोसोन कण-न्यूट्रिनो सृष्टि का कारण हैं.

उत्तर- मैं वैज्ञानिक मीनाक्षी नारायण का लेख पड़ रहा था जिसमें वह कहती हैं कि हमने पूरे तार्किक प्रमाणों से जान लिया की सृष्टि  ईश्वर की रचना नहीं बल्कि फिजिक्स के नियमों के तहत काम करने वाले ऊर्जा कण हिग्‍स बोसोन की रचना है.
१४ मार्च २०१३ को पिछले वर्ष खोजे गए हिग्स बोसोन की असलियत को लेकर जारी दुविधा को वैज्ञानिकों ने दूर कर दिया है। सर्न के वैज्ञानिकों ने गुरुवार को दावा किया कि महामशीन लार्ज हैड्रोन कोलाइडर [एलएचसी] के जरिये जिस कण को खोजा गया था, वही असली हिग्स बोसोन कण है।
हिग्‍स बोसोन की कुछ नवीनतम जानकारी  निम्नलिखित हैं.
सर्न फिजिक्‍स रिसर्च सेंटर ने गुरुवार को इस बात की विश्‍वास के साथ पुष्टि कि वैज्ञानिकों ने बहु प्रतीक्षित सब एटोमिक पार्टिकल `हिग्‍स बोसोन` की खोज कर ली है।

यह कण परमाणु से लेकर सूर्य के वजन के लिए जिम्मेदार हैं.

दुनिया स्थित भौतिकी की सबसे बड़ी प्रयोगशाला सर्न में वैज्ञानिकों ने सबएटॉमिक पार्टिकल यानी अतिसूक्ष्म कण न्यूट्रिनो की गति प्रकाश की गति से भी ज़्यादा पाई है.सर्न के वैज्ञानिकों ने 23 सितंबर को इसकी गति का जो निष्कर्ष निकाला है, वह बड़ा चौंकानेवाला था। सर्न के वैज्ञानिकों द्वारा स्वीटजरलैंड में जेनेवा के करीब भूगर्भ में न्यूट्रिनो नामक अणु को छोड़ा गया इस अणु ने 730 किमी का लंबा रास्ता तय किया और इटली के ग्रान सासो पहाड़ी के एक शोध केंद्र तक प्रकाश की गति की तुलना में 60 नैनो सेकेंड से भी कम समय में पहुंचा।  वैज्ञानिक स्टीफेन हॉकिंग का मानना है कि अभी इसमें और भी शोध होने हैं।
वैज्ञानिक मानते हैं कि न्यूट्रिनो बिग बैंग के समय बने। अब यह लगातार सूरज में हो रहे नाभिकीय विघटन से बन रहे हैं। सूर्य से प्रति सेंकेंड धरती पर करीब 65 अरब न्यूट्रिनो आते हैं। इनकी गति प्रकाश की गति यानी 299,792,458 मीटर प्रति सेंकेंड के बराबर या प्रकाश की गति से कुछ अधिक होती हैं,.  इन्हें न तो नंगी आँखों से देखा जाता है और न ही महसूस किया जा सकता है।
यह न्यूट्रिनो किसी कमजोर बंधन वाले अणु या परमाणु से टकराते हैं, तो उन्हें तोड़ कर रख देते है और इनका व्यवहार भी बदल जाता है।
विशेष किस्म के कंप्यूटराइज्ड सूक्ष्मदर्शी से देखने पर पता चला है कि अक्सर न्यूट्रिनो टक्कर के बाद न्यूट्रॉन में बदल जाते हैं और अकेले तैरते हुए अपने पीछे एक विकीरण छोड़ते जाते हैं
अब तक जो माना जाता रहा है कि फोटोन ( प्रकाश कण )का कोई भार नहीं होता है।  नए शोध से पता चला है कि न्यूट्रिनो का भार भी है। माना जा रहा है कि वैज्ञानिक ब्लैक होल और बिग बैंग के बाद पृथ्वी के निर्माण के रहस्य को जानने के लिए जो शोध कर रहे हैं, उसमें यह मील का पत्थर साबित हो सकता है।
हमारा मूल प्रश्न अब यह  है कि आत्मा है यह नहीं. इसलिए हमें आत्मा और न्यूट्रिनो की विशेषताओं पर विचार करना होगा.न्यूट्रिनो  के विषय में संक्षेप में नवीनतम जानकारी प्रस्तुत की है. अब आत्मा को जानिये जो पूर्ण विशुद्ध ज्ञान पुञ्ज है. इसके कारण मैं का बोध होता है. इच्छा,आसक्ति, द्वेष,सुख, दुःख,क्रोध, भय ,अभय, घृणा, हर्ष, उल्लास  करुणा, दया आदि अनेक भावों, संवेदनाओं का जन्म होता है.
क्या न्यूट्रिनो जो परमाणु से लेकर सूर्य के वजन के लिए जिम्मेदार हैं के अन्दर या किसी क्रिया प्रक्रिया से मैं का बोध हो सकता है. इच्छा,आसक्ति, द्वेष, सुख, दुःख, क्रोध, भय, अभय, घृणा, हर्ष, उल्लास, करुणा, दया आदि अनेक भावों, संवेदनाओं का जन्म हो सकता है. यदि वैज्ञानिक इसे प्रमाणित कर दें तभी न्यूट्रिनो सृष्टि का मूल कारण स्वीकार्य होगा.
अब आपका प्रश्न उपस्थित होता है
इस सृष्टि कोई न कोई कारण अवश्य है और वह कारण है परब्रह्म आत्मतत्त्व जो पूर्ण विशुद्ध ज्ञान है.
परब्रह्म परमात्मा भूतों का आदि, मध्य और अन्त है अर्थात सभी भूत आत्मतत्व परमात्मा से प्रकट होते हैं और उसमें में स्थित रहते हैं और अन्त में उसमें ही विलीन हो जाते हैं। पर ब्रह्म परमात्मा सब भूतों में उनके हृदय में स्थित आत्मा है, वह सृष्टि के अणु अणु में व्याप्त है,प्रत्येक हिग्स बोसोन कण-न्यूट्रिनो में व्याप्त है. आत्मतत्व ने इस सृष्टि को धारण किया हुआ है। इसी कारण प्रत्येक परमाणु या अब ज्ञात न्यूट्रिनो  में एक सिस्टम है, एक लय है, एक गुण धर्म है, एक नियम है. यह गुण धर्म, यहनियम कहाँ से आया? इसका कारण है  प्रत्येक परमाणु या अब ज्ञात न्यूट्रिनो में विशुद्ध ज्ञान छिपा हुआ है. इसी कारण अनुकूल परिस्थिति मिलते ही जड़ से चेतन प्रकट हो जाता है.
ईश्वर(आत्मतत्व) पूर्ण विशुद्ध  ज्ञान है और  स्रष्टि परम विशुद्ध ज्ञान का विस्तार है. ज्ञान जड़ हो सकता है पर जड़ ज्ञान नहीं हो सकता. इसलिए ज्ञान अनादि सत्ता है. सृष्टि का निर्माण का आदि कारण ज्ञान है जिसमे आदि अवस्था में कोई हलचल नहीं थी, कोई स्पंदन नहीं था. प्रत्येक का निश्चित स्वभाव होता है. ज्ञान में तरंग उठना स्वाभाविक है.
इस कारण  विशुद्ध शांत ज्ञान में ज्ञान का स्फुरण हुआ और ज्ञान शक्ति तथा क्रिया शक्ति का उदय हुआ. ज्ञान और क्रिया शक्ति के भिन्न भिन्न मात्रा में मिलने से त्रिगुणात्मक प्रकृति का विस्तार होने लगा. इसे मानव मस्तिष्क के अध्ययन से भी जाना जा सकता है. सामान्यतः भिन्न भिन्न प्रकार की मस्तिष्क तरंगे किसी भी मनुष्य में भिन्न भिन्न अवस्थाओं में देखी जाती हैं जैसे क्रियाशील अवस्था में बीटा तरंग, गहरी नीद में डेल्टा तरंग आदि. इसी प्रकार परम ज्ञान में पहली अवस्था में हाई डेल्टा तरंग स्वतः उत्पन्न हुई जिससे ज्ञानशक्ति और क्रिया शक्ति विस्तृत हुई और बीटा तरंग फैलने लगीं. यह रेडिएन्ट उर्जा लगातार निकलती गयी और कालांतर में वैज्ञानिक अल्बर्ट आयनस्टीन के मान्य सूत्र   E=mc2 के आधार पर घनीभूत हुई और पदार्थ बना. इस प्रकार सृष्टि का विस्तार होता गया, हो रहा है. हो सकता है कि हिग्स बोसोन कण-न्यूट्रिनो के कारण कल कोइ दूसरा कारण खोज लिया जाय.
हिंदू इस परम विशुद्ध ज्ञान को परमात्मा, भगवान, शब्दब्रह्म, अव्यक्त  कहते हैं, यह पूर्णतया वैज्ञानिक एवम सत्य है की कोई जड़ पदार्थ चेतन में न बदल सकता है, न चेतन को पैदा कर सकता है अतः सृष्टि का कारण परम ज्ञान है.
विशुद्ध शांत ज्ञान में ज्ञान का स्फुरण ही परमात्मा का संकल्प है . ज्ञान और क्रिया शक्ति के भिन्न भिन्न मात्रा में मिलने से त्रिगुणात्मक प्रकृति का विस्तार जगत का निर्माण है. छान्दग्योपनिषद  में सुस्पष्ट है उस ब्रह्म ने स्वयं ही अपने आपको इस जड़ चेतन जगत के रूप में प्रकट किया. यही भगवद्गीता भी कहती है और इस सत्य को एक दिन विज्ञान भी स्वीकार करेगा.


प्रश्न - क्या आप उपरोक्त बात को एक वाक्य में बता सकते हैं?

उत्तर-  परमात्मा जो विशुद्ध पूर्ण ज्ञान है वह बीज रूप में प्रत्येक अणु. परमाणु,  हिग्स बोसोन कण-न्यूट्रिनो आदि जो भी सृष्टि का आदि कण है उसके अन्दर  स्थित है जिसके कारण वह कण एक नियम का, गुण धर्म का पालन करता है.

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