Saturday, March 16, 2013

तेरी गीता मेरी गीता -33- बसंत



प्रश्न- ईश्वर साकार है या  निराकार?
उत्तर - ईश्वर साकार भी है और निराकार भी है. ईश्वर जड़ चेतन दोनों का कारण है इसलिए वह किसी भी स्वरुप में हो सकता है अथवा निराकार होकर सर्वत्र है. यदि ईश्वर को मात्र निराकार मान लिया जाया तो उसकी शक्ति को हम सीमित कर देते हैं.
दार्शनिक रूप से ईश्वर की निराकार स्थिति ब्रह्म कहलाती है जो अव्यक्त है, यह विशुद्ध ज्ञान की पूर्ण एवं शांत अवस्था है. ब्रह्म जब अपनी दिव्यता के साथ माया में चमकता है तो ईश्वर कहलाता है. इसी कारण हिन्दू ईश्वर की उपासना करते हैं. ब्रह्म की उपासना नहीं की जा सकती है वह बोध का विषय है.
ईश्वर का विस्तार, साकार स्वरूप जगत है पर यथार्थ में इस जगत की कोई सत्ता नहीं है क्योंकि  परमात्मा से जगत पृथक नहीं है.
ईश्वर का साकार स्वरूप-
सत् रज तम (महत् )
अहँकार
बुद्धि
मन
शब्द
स्पर्श
प्रभा
रस
गंध
आकाश
वायु
अग्नि
जल
पृथ्वी
इन सबका मिला जुला पूर्ण चैतन्य शुद्ध स्वरूप ईश्वर का साकार स्वरूप है.

प्रश्न- क्या कोई मनुष्य ईश्वर हो सकता है?
उत्तर - हाँ, जो मनुष्य जड़ को चेतन और चेतन को जड़ करने में समर्थ हो वह ईश्वर है. जिसके अन्दर समस्त दिव्यताओं का समावेश हो वह ईश्वर है. श्री कृष्ण और श्री राम ऐसे ही अवतारी मनुष्य के उदाहरण हैं.

प्रश्न - साकार ईश्वर की पूजा के विषय में आप का क्या अभिमत है?
उत्तर- आप माने या न माने पर किसी न किसी रूप में सभी साकार रूप में ही ईश्वर की पूजा करते हैं. शब्द अथवा नाम क्या है जिससे हम ईश्वर को याद करते हैं, पुकारते है. यह शब्द अथवा नाम भी साकार ही तो है.

प्रश्न- मूर्ति पूजा के विषय में आप का क्या अभिमत है?
उत्तर- मूर्ति पूजा आपके प्रेम का प्रतीक है. हम घर के सदस्य जिसे प्यार करते हैं उसकी भिन्न भिन्न फोटो रखते हैं. इसी प्रकार ईश्वर की दिव्यताओं का विग्रह मूर्ती पूजा है. मूर्ती में स्थापित आपकी भावना का महत्व है. इसके अलावा सभी धर्म मानते हैं की ईश्वर सर्वत्र है, कण कण में है फिर मूर्ती में उसे स्वीकार करने में क्या हर्ज है.
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