Wednesday, March 27, 2013

तेरी गीता मेरी गीता- 49 - बसंत



प्रश्न- परा,पश्यन्ति आदि वाणी क्या हैं?
उत्तर- वाणी चार प्रकार की होती है. परा, पश्यन्ति, मध्यमा और बैखरी
हमारे शरीर में ज्ञान के चार केंद्र हैं

आत्मा- विशद्ध ज्ञान - की आवाज जो वाणी से निकलती है परा कहलाती है. यह वास्तविक सत्य होती है.

बुद्धि - निश्चयात्मक ज्ञान-की आवाज जो वाणी से निकलती है पश्यन्ति कहलाती है. यह तात्कालिक रूप से निश्चयात्मक सत्य होती है.

मन- संशयात्मक ज्ञान - की आवाज जो वाणी से निकलती है मध्यमा कहलाती है. यह सदा संशयात्मक होती है.

ज्ञानेन्द्री- शरीर की संवेदना- की आवाज जो वाणी से निकलती है बैखरी कहलाती है. यह शरीर की संवेदना, क्रिया प्रक्रिया पर निर्भर करती है.

प्रश्न-आप भक्ति को दुर्लभ मानते हैं तो फिर क्या करना चाहिए?
उत्तर- आप ज्ञान के लिए अपने अन्दर शुभ इच्छा और विचारणा को व्यवहार में लायें.

प्रश्न-शुभेच्छा क्या है?
उत्तर- अपने अज्ञान अथवा जड़ता नष्ट करने की इच्छा शुभेच्छा  है.

प्रश्न-विचारणा क्या है?
उत्तर- तत्त्व दर्शन का अध्ययन, मनन करना विचारणा है. तत्त्व ज्ञानियों का संग और इस प्रकार अपने  प्रतिबोध धरातल को पुष्ट करना विचारणा है.

प्रश्न-प्रतिबोध के धरातल के पुष्ट होने पर क्या करें?
उत्तर- अपने स्वास के आने जाने को देखें. आप अपनी क्रियाओं को, संवेदनाओं के दृष्टा होने का प्रयास करें.
मन से दीन होने का प्रयास करें.
अपने अस्मिता के सांसारिक फैलाव को कम करें.




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