Friday, March 8, 2013

तेरी गीता मेरी गीता - 29 - बसंत



प्रश्न- क्या आप उस परम अव्यक्त, बोध, माया और अस्मिता की प्रतीति को सरल और संक्षेप में बता सकते हैं?

उत्तर - परमात्मा अव्यक्त है वही सत है वही वास्तविकता है.
सरल शब्दों में उसे समझिये-

है.-अव्यक्त - पूर्ण - परमात्मा

हूँ.-चेतन्य बोध

मैं हूँ.- अस्मिता का बोध - चैतन्य  - शुद्ध अहंकार

हूँ और मैं हूँ के अनेक अनुभूति धरातल हैं.

अस्मिता की पदार्थ में प्रतीति - अहंकार - माया का संसार

मैं शरीर हूँ.
मैं पुरुष हूँ.
मैं स्त्री हूँ.
मैं ( नाम ) हूँ. जैसे बसंत, प्रताप, माधव आदि.
मैं----का पुत्र हूँ.
मैं---- का भाई हूँ.
मैं---- का पति हूँ.
मैं----का राजा हूँ.
मैं---- फकीर हूँ.
मैं---- सन्यासी हूँ.
मैं---- का पिता हूँ.
मैं---- मालिक हूँ.
मैं कर्ता हूँ.
मैं जन्मदाता हूँ.
मैं भोक्ता हूँ.
मैं जीवित हूँ.
मैं मर रहा हूँ.
मैं मरा हूँ.
मैं धनी हूँ.
मैं निर्धन हूँ.
मैं विद्वान् हूँ.
मैं मूर्ख हूँ. आदि

प्रश्न- अस्मिता की प्रतीति संसार की ओर क्यों फैलती है.

उत्तर- चित्त में सदा कोइ न कोई गुण रहता है. इस चित्त के कारण संसार है और संसार अज्ञान- पदार्थ है इसलिए चित्त अज्ञान से बना है इसलिए अज्ञान के परमाणु ज्यादा आकर्षित करते हैं.
अज्ञान का अर्थ जड़ और निरंतर बदलने वाले ज्ञान से है जो सत दिखाई देता है पर कुछ समय के लिए. जो है और नहीं भी है.

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