Monday, March 25, 2013

तेरी गीता मेरी गीता - 46 - बसंत



प्रश्न - हमारे ज्ञान के लिए ब्रह्म की अवस्थाओं को संक्षेप मैं बताने का कष्ट करें जिससे इधर उधर का संशय न हो.
उत्तर- देखो जी परमात्मा एक है जैसे तुम जागते ,सोते ,स्वप्न में , नीद में, समाधी में आदि आलग अलग बरताव करते हो उसी प्रकार ब्रह्म की अवस्थाएं हैं.

1- अव्यक्त
2- अ -जीव (ईश्वर)-अव्यक्त- नारायण - माया मुक्त. ब- प्रकृति -मूल अवस्था में

                                                                            ब -माया – व्यक्त अव्यक्त- तीन गुणों वाली


अ -1- जीव (ईश्वर) - 1-ब्रह्मा 2-विष्णु  3-महेश –मायायुक्त और मायामुक्त
अव्यक्त जीव रूप में जन्म का जब कारण होता है तो उसे ब्रह्मा कहा जाता है. जब वह स्थिति अर्थात जीवन का कारण होता है तो  विष्णु और जब मृत्यु का कारण होता है तो शंकर- महेश कहा जाता है. एक ही तत्त्व की अलग अलग स्थितियां है. यहाँ से लेकर अव्यक्त(1) में केवल विद्वानों की दृष्टि खेल का अंतर है. जिसने तत्त्व जान लिया उसे इन सब में  केवल एक स्वरुप ही भासित होता है.

अ -2- जीव - अव्यक्त -माया बद्ध- मनुष्य आदि
अ -3- जड़ चेतन सृष्टि- व्यक्त

प्रश्न- तत्व ज्ञान क्या है?
उत्तर- आप किस तत्त्व से बने हैं, इस सृष्टि का कारण कोन सा तत्त्व है तत्व ज्ञान  है. जिस तत्त्व को पाकर पूर्णता प्राप्त हो, जिसे जानकार कुछ भी जानना शेष न रह जाय उसे तत्त्व ज्ञान कहते हैं.

प्रश्न- क्या मनुष्य तत्व ज्ञान प्राप्त कर सकता है?
उत्तर- हाँ

प्रश्न- किस अवस्था में उसे तत्व ज्ञान प्राप्त होता है?
उत्तर- निर्बीज अवस्था में, इसे तुरीयातीत अवस्था कहा गया है. इसे ही बोध कहा जाता हैं. यहाँ आप अपनी स्वरुप स्थिति को प्राप्त होते हैं. अव्यक्त की पहली अवस्था को प्राप्त हो जाते हैं.

प्रश्न-  तुरीयातीत अवस्था क्या है?
उत्तर- आपका अपने अस्तित्व में समाहित हो जाना. अपने अस्तित्व को पा लेना तुरीयातीत अवस्था है. आपके मन बुद्धि,चित्त आदि सभी उस आदि अव्यक्त में समाहित हो जाते हैं. आप ही कारण से परे सृष्टि के कारण हो जाते हैं.

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