प्रश्न- आप कहते हैं कि अपराधी बुद्धि बनाती है और जीवन के बाद यह बुद्धि बीज रूप में ज्ञान में समाहित हो जाती है और जीवात्मा का कारण बनती है. इसी के कारण जीव कर्म करने और फल भोगने के लिए विवश है.तो क्या संसार से अपराध अथवा बुराई कम नहीं होंगे.
उत्तर - जो कुछ इस संसार में हो रहा है सब प्रकृति का खेल है यही जीव देह में बुद्धि के रूप में विराजमान है. अब जैसी प्रकृति वैसा खेल इसलिए अच्छा बुरा संसार में पहले भी था, आज भी है और कल भी रहेगा. किसी अपराधी को जब तक अपने अन्दर से किये कर्म के लिए स्वाभाविक प्रायश्चित न हो तब तक उसकी बुद्धि नहीं बदल सकती.इसलिए ज्यादातर बुरा मनुष्य तामसिक और राजसी बुद्धि के साथ जन्मता है और अच्छा व्यक्ति अधिक सात्विक बुद्धि लेकर जन्मता है. हम संसार में अधिक से अधिक किसी व्यक्ति की देह को सजा या अन्य तरीके से नष्ट कर सकते हैं पर उसकी प्रकृति जो बीज रूप में ज्ञान में समाहित हो जाती है और जीवात्मा का कारण बनती है. इसी के कारण मनुष्य अच्छा बुरा कर्म करने लिए विवश है. पोराणिक कथा साहित्य बताता है कि हिरन्यकश्यप और हिरणाक्ष ही अगले जन्म में रावण और कुम्भकर्ण हुए आदि. जो राजस और तामसिक प्रकृति की ओर बड़ता है वह अधिक बुराई की ओर बड़ता जाता है. इसी प्रकार सात्विक प्रकृति के लोग श्रेष्टता के ओर बड़ते जाते हैं. इसलिए संसार में सदा बुरी से बुरी प्रकृति के लोग और अच्छी से अच्छी प्रकृति के लोग मिल जायेंगे.
जहाँ तक क्या संसार से अपराध अथवा बुराई कम होने का प्रश्न है केवल रजोगुणी प्रकृति पर अंकुश लगाकर और सद्व्यवहार से दूसरे की प्रकृति को बदल कर ही तात्कालिक रूप से रोका जा सकता है.
प्रश्न - व्यक्ति को बुद्धि भ्रम कैसे होता है?
उत्तर - तमोगुणी बुद्धि के कारण उसका विवेक नष्ट हो जाता है, व्यक्ति यह सोचने लगता है कि जो मैं कर रहा हूँ वह सही है. दवाई उसे जहर दिखाई देती है और जहर उसे दवाई. बुद्धि में अन्धकार छा जाने के कारण उसे नहीं सूझता है कि वह क्या कर रहा है. इसी कारण कभी कभी लोगों को आती हुई रेल गाड़ी नहीं दिखाई देती और वह कट कर मर जाते हैं.
प्रश्न - व्यक्ति समाज के लिए खतरा कैसे हो जाता है?
उत्तर - तमोगुणी बुद्धि के साथ जब घोर रजोगुणी बुद्धि का संयोग होता है तो अभिमान करने वाली बुद्धि जन्म लेती है.यह सोचता है कि वह सर्व श्रेष्ठ है इस अहंकार और अज्ञान (तमोगुण) के कारण वह व्यक्ति समाज के लिए खतरा हो जाता है
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